The story of Pābūjī as told by Mũhato Naiṇasī


The following version of the Pābūjī narrative is a copy of the Vāta Pābūjī rī occurring in the seventeenth-century Chronicle (Khyāta) of Mũhato Naiṇasī (Badrīprasād Sākariyā (ed.), Mũhatā Naiṇasī rī khyāta. Jodhpur: Rājasthān Prācyavidyā Pratiṣṭhān, 1960–62–64–67, vol. 3, pp. 58–79). For a translation, see Appendix 1 of The epic of Pābūjī. I have silently corrected a number of obvious typographical errors, chiefly the omission of numerous closing quotation marks and the occasional Hindi-influenced use of the consonant ड़ in place of ड.

अथ वात पाबूजीरी लिख्यते

धांधळजी महेवै रहै। सु उठैसूं छोड अर अठै पाटणरै तळाव आय उतरिया। सु अठै तळाव ऊपर अपछरा उतरै। ताहरां धांधळजीरा डेरां थकां अपछरा उतरी। ताहरां धांधळजी अपछरावां देखनै एकै अपछरानूं आपड़ राखी। ताहरां अपछरा बोली — ‘वडा रजपूत! तैं बुरो कियो। मो अपछरानै आपड़णी न हुती।’ ताहरां धांधळजी कही — ‘तूं म्हारै घरवास रहि।’ तद अपछरा बोली। कही — ‘जे थैं म्हारो पीछो संभाळियो तो जाईस।’ ताहरां धांधळजी कही — ‘थारो पीछो कोई संभाळां नहीं।’ ए बोल करनै रही। नै उठै पाटणसूं चालिया सु अठै कोळू आया।

अठै पमो घोरंधार राज करै। ताहरां धांधळजी पमै पासै तो न गया। अर कोळू आया, गाडा छोडिया, तठै रहै। यूं करतां अपछरारै पेटरा दोय टाबर हुआ — एक बेटी; एक बेटो। बेटीरो नांम तो सोनांबाई, बेटारो नांम पाबूजी। तद अपछरारो महल एकांत कियो। उठै अपछरा रहै। धांधळजी अपछरा घरै नित जावै।

तद एक दिन धांधळजी विचारियो — ‘देखां, अपछरा कह्यो हुंतो, म्हारो पीछो मती संभाळजै, सु आज तो जायनै देखीस; देखां, कासूं करै छै?’ ताहरां पाछलै पोहर धांधळजी अपछरारै महल गया। तठै आगै अपछरा तो सीहणीरै रूप हुई छै, अर पाबू सीहरै रूप सीहणीनूं चूंघै छै। तद धांधळजी दीठौ; ताहरां अपछरा आपरो रूप कियो। पाबू टाबर हुवो। ताहरां धांधळजी महल भीतर गया। ताहरां अपछरा कह्यो — ‘राज! म्हां थां सूं कवल कियो हुंतो जु जेही दिन थां पीछौ संभाळियौ जेही दिन हूं जाईस, सो हूं जाऊं छूं।’ इतरो कहिनै अपछरा तो उडती हुई, सु आकास चढ गई। धांधळजी देखता ही रह्या।

तठा पछै धांधळजी पाबूनै उठै हीज राखियो। धाय पास रही। और छोकरी हुती सु राखी। पछै धांधळजी तो कितरेक दिने देवलोक हुवा।

अर पाबू अर बूड़ो दोय बेटा। तद बूड़ोजी टीकै बैठा। लोक चाकर सरब बूड़ैजीरा हुवा। पाबूजी पासै कोई न रह्यौ। तद धांधळजी रै बेटी दोय हुती, सु पेमांबाई तो जींदराव खीचीनूं परणाई। अर सोनांबाई देवड़ै सीरोहीरै धणीनूं परणाई। तद बूड़ोजी तो राज करै। अर पाबूजी वरस पांचेकमें, पण करामातीक। एकै सिकार चढियो एकै सांढ चढियो सिकार लावै। ईयै भांत रहै।

ताहरां सात थोरी भाई, मा-जाया, चांदियो १, देवियो २, खापू ३, पेमलो ४, खलमल ५, खंघारो ६, चासळ ७। ऐ सात भाई सु ऐ आंना वाघेलैरै चाकर। सु आंनैरै देस मांहै काळ पड़ै, तद थोरीए एक १ जिनावर वणासियो। ताहरां आंनैरै कुंवरनूं खबर गई जु थोरिये जिनावर मारियो छै। ताहरां कुंवर आयो। थोरियांनूं हटकिया। थोरियां अर कुंवर खानाजंगी हुई। ताहरां कुंवर कांम आयो। तद ऐ थोरी कुंवरनूं मार, अर गाडा जोड़नै, टाबर ले नाठा। ताहरां आंनैनूं खबर गई, जु ‘थोरी कुंवरनूं मार नाठा जावै छै।’ ताहरां आंनो चढियो, आय पहुंतो। ताहरां ऐ लड़िया। ताहरां ईंयां थोरियांरो बाप हतो सु कांम आयो। आंनो ईंयांरो बाप मारनै पाछो वळियो।

पछै थोरी ऐ जेहीरै वास जावै सो राखै नहीं। कहै — ‘आंनै वाघेलैसूं पोहचां नहीं।’ तद ऐ थोरी चालिया चालिया पमै घोरंधाररै आया; तद पमै थोरियांनूं राखिया। ताहरां कांमदारां परधानां कही - ‘राज! ऐ थोरी आंनैरै बेटैनूं मार अर आया छै। जो थां राखिया तो आंनैसूं वैर पड़सी। आपां आंनैनै पोंहच सगां नहीं। तदी पमै पण आंनैसूं डरतो थोरियांनूं विदा दीवी। कही — ‘ धांधळांरै जावौ; थांनै राखसी।’

ताहरां ऐ थोरी गाडा लेनै बूड़ैजी पासै आया। आय बूड़ैजीसूं मुजरो कियो नै कही — ‘राज! म्हांनै राखो तो रहां।’ ताहरां बूड़ैजी तो नीछो दियो। कह्यो — ‘म्हारै तो दरकार नहीं; अर पाबू भाईरै चाकर नी रहै छै सु थांनै राखसी।’

तद ऐ थोरी गाडा छोडनै पाबूजीरै आया। तद पूछियो — ‘पाबूजी कठै?’ तद धाय कह्यो जु — ‘पाबूजी सिकार गया छै।’ तद ऐ थोरी पण वांसै सिकार गया। आगै पाबूजी हिरणनूं तीर सांधियो छै। सांढ बैठी छै। इतरै थोरियां पूछियो — ‘रे छोकरा! पाबूजी कठै छै?’ तद पाबूजी बोलिया — ‘पाबूजी तो आघा सिकार खेलणनूं पधारिया छै।’

ताहरां थोरियां आ समस्या कीवी जु — ‘ओ छोकरो ऊभो छै, आपां आ सांढ ले जावां, तो आपां आजरी वळ करां।’ इतरी थोरियां विचारी। ताहरां पाबूजी तो कारणीक मरद। तद पाबूजी ईंयांरी जीवरी लखी। ताहरां पाबूजी बोलिया। कही — ‘रे थोरियां! थे आ सांढ ले जावो, आजरी वळ करो। पाबूजी आवसी ताहरां हूं कहि लेइस।’ ताहरां थोरी सांढ लेनै डेरै आया। उठै ईहां सांढ मारनै डेरै वळ कीवी।

अर पाबूजी हिरण लेनै पाछलै पोहर डेरै आया। ताहरां पाछलै पोहररा थोरी पण पाबूजीरै मुजरै आया। आगै पाबूजी बैठा छै। तठै थोरियां विचारियो। कही, रे! ओ तो ऊही, जे आंपांनूं सांढ दीवी हती। तद थोरियां धायनूं पूछियो — ‘जी! पाबूजी कठै?’ ताहरां धाय कह्यो — ‘रे वीरा! ओ बैठौ, तूं ओळखै नहीं?’ तद ईंयां पाबूजीसूं सलांमी कीवी। तद पाबूजी चांदैनूं कही — ‘रे चांदा! म्हैं म्हारी सांढ थांनै झलाई हती सु कठै?’ ताहरां चांदै कही — ‘राज! थां म्हांनै वळ मांहै दीवी हती, सु म्हां खाधी छै।’ ताहरां पाबूजी कही — ‘का रे! आ काई हुई छै जु सांढ खाधी? वळनूं सीधो दरावस्यां। पण सांढ किसी तरै खावो?’ ताहरां पाबूजी कही — ‘सांढ थां खाधी नहीं।’ ताहरां थोरियां कह्यो — ‘सांढ तो म्हां खाधी, हमैं कठा लावां?’

ताहरां पाबूजी साथै मांणस देनै कही — ‘ईंयांरै डेरै जाय खबर तो करो।’ ताहरां थोरी मांणस रै साथै डेरै जाय देखै तो कासूं? जठै हाड पड़िया हुता तठै सागे सांढ कसांणो कियां ओगाळै छै। तद ऐ जाय देखै तो कासूं? सांढ बैठी छै। तद थोरियां आपरी बैरांनूं पूछियो। कह्यो — ‘आ सांढ अठै के विध?’ ताहरां बैरां पण कही — ‘राज! आगै तो नहीं हती। मांहरैही निजर हणां आई।’ ताहरां थोरियां विचारी जु — ओ वडो करामाती रजपूत छै। आपांनै ओ राखसी। तद ऐ सांढ लियां-लियां पाबूजी पासै आया। ताहरां पाबूजी कह्यो — ‘रे! थे कहता सांढ खाधी।’ ताहरां थोरियां कह्यो — ‘राज! समधा। म्हांनूं राज परचो दिखायो।’ ताहरां पाबूजी कह्यो — ‘तो थे रहस्यो?’ ताहरां थोरियां कह्यो — ‘राज! म्हे रहस्यां।’ ताहरां थोरी पाबूजी पासै चाकर रह्या। इयै भांत रहतां हता।

तद गोगैजीनूं बूड़ैजीरी बेटी परणाई। ताहरां बाईरै दायजैरी वखत किहि गायां संकळपी, किही क्युंही संकळपियो। ताहरां पाबूजी कह्यो — ‘बाई! हूं तोनूं दोदै सूंमरैरी सांढांरा वरग आंण देईस।’ ताहरां गोगोजी हसिया। कही — ‘आजै दोदो सूंमरो वोढो-रांवण कहीजै। तैरी सांढां किसी भांत ले आवसी?’ ताहरां पाबूजी बोलिया — ‘सांढां ले आईस।’ पछै गोगाजी तो हलांणो लेनै आपरै ठिकांणै गया। वांसै पाबूजी हरियै थोरीनूं कही — ‘रे हरिया! दोदैरी सांढियां हेर आव, ज्युं बाईनूं सांढियां आंण देवां। बाईरा सासरिया हससी; कहसी — काको सांढियां कद आंण देसी?’ ताहरां हरियो तो सांढियांरै हेरै गयो।

अर अठै चांदियो नित पाबूजीनूं कहै — ‘आंनै वाघेलै माथै म्हारो वैर छै, सु राज म्हारो वैर घेरावौ।’ ताहरां कह्यो — ‘रे घेरावस्यां।’

युं करतां पाबूजीरी बैहन सोनांबाई अर सोनांबाईरै एक सोक वाघेली तिके चोपड़ रमती ही, सु वाघेलीरै बाप गहणो घणो दियो हुंतो, सु वाघेली आपरै गैहणैरी वडाई करै, गहणैरो वखांण घणो करै। ताहरां ऐ आपसमें बोल उठी। ताहरां वाघेली सोनांनूं मेहणो दियो। कह्यो — ‘थारो भाई थोरियांसूं भेळो जीमै।’ ताहरां सोनां रीस कीवी। ताहरां राव कही जु — ‘राठोड़! रीस क्युं करो, साच कहै छै, जु पाबू थोरियांरै भेळो तो बैसै छै।’ ताहरां सोनां कही — ‘थे कहो सो खरी, पण जिसा म्हारै भाईरै थोरी छै जिसा थांहरै उमराव कोयनी।’ इतरो कह्यो सोनां; तैसूं राव पण रीस कर ऊठियो। ताहरां ताजणो रावरै हाथ हुंतो, सु राव तीन ताजणा वाह्या।

ताहरां सोनांबाई कागद लिखनै पाबूजीनूं मेलियो। ईयै भांत लिखियो — ‘वाघेलीरै कहै रावजी म्हारै चोट वाही।’ सु ऊ कागद ले जायनै आदमी पाबूजीरै हाथ दियो। पाबूजी कागद वांचनै चांदैनूं बुलायौ; अर कह्यो — ‘तयारी करो। आंपां सीरोही राव ऊपर जास्यां। बाईरो कागद आयौ छै।’ ताहरां सात असवार थोरी, एक पाबूजीरै चढण काळवीं घोड़ी।

सु काछेला चारण समुद्र खेप भरण गया हुता, सु ईंयां एक घोड़ी लीवी। लेनै समुद्ररै कांठै आय उतरिया। ताहरां तेजल घोड़ो नीसरनै घोड़ीनूं लागो। तैरी काळवीं वछेरी नीपनी। सु आ घोड़ी जींदराव काछेलां कनां मांगी, तद चारणां न दीवी। अर बूड़ैजी मांगी तद पण न दीवी। ताहरां पाबूजी मांगी। ताहरां चारणां पाबूजीनूं घोड़ी दीवी। तद कही ‘राज! घोड़ी थांनूं दीवी छै, जो म्हांरै कांम पड़ै तद म्हांरी वाहर करज्यो।’ ताहरां पाबूजी कही — ‘थांहरै कांम पड़िये जूती पैहरां नहीं।’ ओ बोल कर घोड़ी लीवी छी। तद जींदराव खीची नै बूड़ैजी रीस कीवी चारणांसूं।

पछै पाबूजी असवार हुवै नै बूड़ैजीरै आया। बूड़ैजी सौं मुजरो कियो। पछै पाबूजी भीतर भाभीजीनूं मुजरो कहियो। ताहरां छोकरी भीतर जायनै डोड-गेहलीनूं कह्यो — ‘बाईजी! थांनूं पाबूजी जुहार कहायो छै।’ ताहरां छोकरीनूं डोड-गेहली कह्यो जु — ‘तूं देवरनूं जायनै कहि, बाईजी भीतर बोलावै छै।’ ताहरां छोकरी जाय अर कह्यो। तद पाबूजी भीतर गया। तद डोड-गेहली कह्यो — ‘पाबूजी! थांनै चारण पासै घोड़ी न लेणी हती। घोड़ी थांरै भाई मांगी हती, तैसूं थां न लेणी।’ ताहरां पाबूजी कही ‘जो भाईजीरै घोड़ी लेणी छै तो आ हाजर छै।’ ताहरां भोजाई कही, ‘हमैं काहिणनूं लै? पण तूं घोड़ीनूं कासूं करीस? खेती वाहो, बैठा खावो। पण दीसै छै, घोड़ी लीवी छै तो धाड़ा करसी।’ ताहरां पाबूजी कह्यो — ‘बूड़ैजीरै घोड़ी लेणी हुवै तो लो। अर थे मेहणो बोलो छो तो म्हे ई रजपूत छां; घोड़ी म्हांनूं ई चाहीजै छै। अर धाड़ैरी कहो छो तो डीडवांणैरी हीज घोड़ियां ले आईस।’ इतरी पाबूजी कही, तद डोड-गेहली कह्यो — ‘जी, इसा भाई तो म्हारा ई न छै सु थांनै धाड़ो ले आवण दियै, का तो पहुंच अर मारग में ही राखै, अर जांणै बैहनेईरो भाई छै, मारै नहीं तो अँवळै … आंसवै रोवावै।’ ताहरां पाबूजी कह्यो — ‘म्हे राठोड़ छां, डोड कदै कोई राठोड़ मारियो सुणियौ हुतौ?’ डीडवांणै डोड राज करता तठै बूड़ोजी परणिया हुता। तद पाबूजी भोजाईसूं वाद करनै ऊठ डेरै आया।

ताहरां चांदैनूं बुलायो, कह्यो — ‘चांदा! आंपां देवड़ांरै पछै जास्यां; पैहली डीडवांणैरो धाड़ो लास्यां।’ ताहरां पाबूजी असवार हुवा। थोरी सातै भाई असवार हुवा। ताहरां चालिया चालिया डीडवांणैरै निजीक आया। ताहरां पाबूजी तो एक थळ माथै तरकस नांखनै बैठा। घोड़ी कनै छोडी। अर थोरियां सांढियांरो वरग लियो। तठै थोरियां सांढियांनूं चलाई। ताहरां रबारी डोडां आगै जाय पुकारियो। कह्यो — ‘राज! सांढियां लीवी, वाहर चढो।’ ताहरां डोडां पूछियो; कह्यो — ‘रे! कितराइक असवार छै?’ ताहरां ईयै कही — ‘राज! सात प्यादा थोरी चोरटा लियां जाय छै।’ ताहरां वाहर चढिया, सु थोरी तो सांढियां लेनै आघा नीसरिया। अर वांसैसूं वाहररा असवार जे थळ पाबूजी बैठा हता, ते थळरी बराबर आया। ताहरां पाबूजी तीरकारी करी। तिकणसूं डोडांरा मांणस १० कांम आया। ताहरां पाबूजी चांदैनूं, बीजा ही थोरियांनूं साद कियो। कह्यो — ‘पाछा आवो।’ ताहरां थोरी पाछा घिरिया। तठै घोड़ा लेनै थोरी चढिया। इतरै वांसासूं डोडांरो सिरदार आय पुंहतो। ताहरां ईहां पाबूजीरै साथरा थोरियां डोड सिरदारनूं आपड़ियो। ताहरां बाकीरो साथ डोडांरो पाछो फिरियो। ताहरां पाबूजी कह्यो — ‘रे! सांढियां छोड दियो। आंपणै ईहां डोडांसूं कांम हुतो सु ले हालो।’

ताहरां ऐ डोडांनूं लेनै रातो-रात चालिया सु कोळू आया। ताहरां डोडांनूं तो कोटड़ी मांहै राखिया। अर आप महल मांहै जाय पोढिया। तद प्रभात हुवो, ताहरां पाबूजी जागिया। ताहरां धायनूं कही — ‘धायजी! थे डोडगेहलीनै जाय अठै बुलाय लावो। कहो, जु पाबूजी कह्यो छै जु थे भाभीजी आयनै मांहरो माळियो देखो। म्हे नवौ करायो छै।’ ताहरां धाय बूड़ैजी री वहू नै बुलावणनै गई। अर थोरियांनूं पाबूजी कही — ‘चांदा! थे डोडांनूं पाघांसूं मुसक्यां बांधिनै चुंहटियांसूं तोड़ रोवायनै झरोखै नीचै आंण ऊभा राखौ।’ ताहरां चांदौ डोडांनूं लेनै पाबूजीरै झरोखै नीचै आंण ऊभौ छै। इतरै धायजी डोड-गेहलीनूं जाय कही — ‘राज! थांनै पाबूजी बोलावै। कहै छै जु — म्हांरै नवो माळियौ करायौ छै, सु थां पधारनै देखो।’

ताहरां डोड-गेहली वैहल बैसनै पाबूजीरो मोहल देखणनूं आई। आगै पाबूजी बैठा हुता सु ऊठ मुजरो कियो। कह्यो — ‘भाभीजी! राज! झरोखै निचै तमासौ छै सु देखीजै।’ ताहरां आ झरोखै मांहै देखण लागी, ताहरां थोरियां डोडांनै चुंहटिया तोड़िया; ताहरां रोवण लागा। ताहरां डोड-गेहली देखै तो कासूं? भाई नीचै बाधौ छै अर रोवै छै। ताहरां डोड-गेहली कह्यौ — ‘पाबूजी! ओ कासूं सूल छै? म्हैं तो थांनूं हसती वात कही हती।’ ताहरां पाबूजी कह्यो — ‘ भाभीजी! हूं पण हसतो ले आयो छूं। पण रजपूतांनूं वैण बोलीजै नहीं। मैहणा कपूतांनूं कहीजै।’ ताहरां डोड-गेहली कह्यौ — ‘भली कीवी। हमैं तो छोडो।’ ताहरां पाबूजी डोड भोजाईरै कहै छोडिया।

पछै डोड-गेहली आपरा भायांनूं ले जाय दिन ४ राखनै घरांनूं सीख दीवी।

तठा पछै हरियै सांढियांरी हेरप जोयनै आय पाबूजीनूं कही —’राज! दोदैरी सांढियां आंपांरै हाथ आवणरी नहीं। दोदो जोरावर छै। दोदैरो राज वडो। अर वीचमें पंच नद वहै छै। ओ ओढो-रावण वाजै छै। आंपां उठै पोंहच सगां नहीं।’ इतरी हरियै आयनै कही। ताहरां पाबूजी कह्यो — ‘ तो भला! फिरता समझ लेस्यां। हमार तो देवड़ां ऊपर हालो।’ ताहरां ऐ सात असवार, नवमौ हरियो प्यादो, ऐ सारा सीरोही ऊपर चढिया।

तठै वीच आंनो वाघेलो रहतो। आंनैरी वडी साहबी हुती। पण ऐ सारा ही करामातीक। ताहरां चांदै कही — ‘राज! आंनौ अठै रहै छै। अर मांहरौ वैर छै।’ ताहरां ऐ चलायनै आंनैरै गांव आंनैरै वाग में आय उतरिया। ताहरां आंनैनूं माळी जाय पुकारियौ जु — ‘राज! केई असवार आय उतरिया छै, सु वाग सर्व खोसी खाधौ।’ ताहरां आंनै इतरी सुणनै असवारी कर चढियो। ताहरां पाबूजी नै आंनै वाघेलै आपस में लड़ाई हुई। ताहरां आंनैरो सर्व साथ मारांणो। आंनो पण कांम आयो। तद पाबूजी आंनैनूं मारनै आंनैरै कुंवरनूं कही — ‘तनै पण मारीस।’ ताहरां आंनैरै बेटै आपरी मारो गहणौ पाबूजीरी नजर कियौ। ताहरां पाबूजी आंनैरै बेटैनूं टीकै बैसांणियो।

आंनैरै बेटैनूं टीकै बैसांणनै आप सीरोहीनूं चढिया, सु रातो-रात सीरोही गया। रावनूं कह्यो जु — ‘थे जांणसो पाबूजी म्हैंसूं मिलणनै आया छै सो मिलणनूं हूं नहीं आयो छूं। तैं बाईनूं चाबखा वाया तिकै कारण आयो छूं।’ ताहरां राव पण आपरो साथ एकठो करनै चढियो। ताहरां लड़ाई हुई। ताहरां पाबूजी चांदैनूं कही — ‘चांदा! रावनूं आंपां मारो मती, नै आपड़ लिया।’ ताहरां लड़ाई हुई सु देवड़ांरो साथ घणो मारांणो, अर रावनूं हाथ पड़िया, पकड़ लियो। नै पाबूजी कह्यो — ‘मारो मतां। देवीजीरो जायो छै।’ ताहरां पाबूजीरी बैहन वैहल बैसनै पाबूजी पासै आई, कह्यो, ‘भाई! तूं म्हनै अमर कांचळी दे, रावजीनूं छोड।’ ताहरां पाबूजी बैहनरै कहै रावनूं छोडियो। अर आंनै वाघेलैरी लुगाईरो गहणो पाबूजी बैहननै दियो, नै कह्यो — ‘बाई! ओ गहणो तनै दायजारो छै।’ ताहरां साळै बैहनेई आपसमें रस हुओ। राव पाबूजीनूं लेनै सीरोहीरा गढ मांही आयो।

ताहरां बाईनै साथै लेनै पाबूजी वाघेलीनूं बापरो सुणावणनूं गया। ताहरां सोनां वाघेलीनूं कही जु — ‘बाईजी! थे लोकाचार करो। थांरै आंनै वाघेलै बापनूं म्हारो भाई मार आयो छै, थोरियांरै वैर मांहै।’ ताहरां वाघेली गोडो वाळियो।

अर पाबूजी अठै बैहनरै जीम अर चढिया, तद चांदैनूं कही — ‘चांदा! थारै बापरो वैर लियो छै, अर बाईरो पण वैण वाळियो छै। हमैं चालो, दोदैरी सांढियां ले अर भातीजीनूं देवां। उठै पण सगा हससी, मैहणा देसी।

सु हमैं अठैसूं चढिया सु दोदैरै चालिया। हरियैनै आगै कियो। आगै मारग वीच मिरजै खांन रो राज, तठै ऐ आय नीसरिया। सु एक मिरजैरो वाग, तैंमें कोई उतर सगै नहीं। जो उतरै सो मारियो जाय। अणरो पण वडो राज। ताहरां पाबूजी मिरजै खांनरै वागमें डेरो कियो, सो वाग सोह तोड़ खुवार कियो। ताहरां माळी जाय खांननूं पुकारियो — ‘राज! कोई रजपूत वागमें उतरियो छै, सो वाग सर्व विधूंसियो।’ तद खांन पूछियो — ‘कैसाक रजपूत है?’ ताहरां माळी कही — ‘राज! हिन्दु छै। डावी पाघ बांधियां छै।’ ताहरां खांन कह्यो — ‘जी, येसूं आंपां पौंहचां नहीं। तियै आंनो वाघेलो मारियो।’ सो खांन सांम्हां रसाळ ले हालियो। ताहरां मींयै घोड़ा, कपड़ो, मेवो सांम्हां लेनै वाग आयो। आयनै पाबूजीसूं मिळियो। ताहरां पाबूजी इयैसूं राजी हुवा। तद बीजो तो सर्व पाछो दियो नै एक घोड़ो राखियो, सु घोड़ो पाबूजी हरियैनूं बगसियो।

अठै खांनसूं मिळनै पाबूजी चढिया सु अठै पंचनद ऊपर आया। ताहरां पाबूजी चांदैनूं कह्यो — ‘चांदा! देखां, पांणीरो थाग लै। कितरोहेक ऊंडो छै?’ ताहरां चांदै थाग लियो सु पांणी वांसां-डोब। ताहरां चांदै कह्यो — ‘राज! पार हुय सगां नहीं अर अठै डेरो कर दां। कदै ऊलै पार सांढियां आसी तद आंपां लेस्यां।’

ईयै भांत वात करतां वीच पाबूजी माया फेरी सु पैलै पार जाय ऊभा। ताहरां चांदै फेर परचो पायो। ताहरां चांदैनूं कह्यो — ‘चांदा! सांढियांरो वरग घेरो।’ तद थोरियां जायनै वरग सर्व घेरियो। रबारी ढीलनूं बांध लियो। ऐ सांढियां लेनै पाबूजी पासै आया। ताहरां ढील रबारीनूं पाबूजी छोडनै बांडै ऊंठ चाढनै कही — ‘रे! तूं दोदैरै वाहर घात। कहे, सांढियांरा टोळा लियां जावै छै। जे घेर सगै तो वेगो आवै।’

ताहरां रबारी जाय पुकारियो, कही — ‘मेहरबान सलामत! सांढियांरा वरग सर्व हकाळिया, वाहर करो।’ ताहरां दोदै कही — ‘ अरे! भांग खाधी छै नहीं? ऐसो आज कुंण छै जो दोदै सूंमरैरी सांढां लियै?’ ताहरां रबारी कही — ‘राज! राठोड़ै सांढियां लीवी छै नै कह्यो छै — आय सकै तो वेगो आया।’ इतरो सुणत समां दोदो सूंमरो साथ भेळो करनै चढियो। अर पाबूजी तो सांढियांनूं दाकळी सु पांणी रै मांहैसूं तिरनै पैलै पार हुई नै आपरो साथ पार करनै चलाया आघा।

वांसैसूं दोदो वाहर चढियो, सु मिरजै खांनरै गांम आयनै मिरजैनूं कह्यो जु — ‘राठोड़ां सांढियां लीवी, तूं पण वाहर आव।’ मिरजो दोदैरो चाकर हुतो, सु मिरजो पण चढ दोदैरै सांमल हुवो। ताहरां मिरजै कही जु — ‘आघा मती जावो। सांढियां पाबू राठोड़ लीवी। आंपां घोड़ा मारियां ही पोंहचां नहीम्। पाछा फिरो। जे आंनो वाघेलो मारियो छै सु थांसूं मरै नहीं। सु राज! थे पछै सर्व साथ भेळो करनै जावज्यौ।’ ताहरां मिरजै इतरी कही, ताहरां दोदो तो पाछो फिरियौ सु आपरै ठिकांणै आयो।

अर पाबूजी सांढियां लेनै सोढांरै उमरकोट मांहै कर नीसरिया। ताहरां कोटरै हेठै कर वूआ, ताहरां सोढी झरोखा मांहै बैठी हुती, सु पाबूजीनूं दीठा। तद सोढी मानूं कहाई — ‘जु पछै ही म्हनै परणावस्यो, पाबूजी राठोड़ जावै, परणावो।’ ताहरां ईये सोढै सिरदारनूं कहियो। ताहरां सोढै वांसै आदमी मेलियो, नै पाबूजीनै कहियो — ‘राज! म्हारै परणीजनै पधारो।’ ताहरां पाबूजी कही — ‘राज! आज तो सांढियां लियां जावां छां। पाछै आय परणीजस्यां।’ ताहरां सोढां आदमियां साथै नारेळ मेलियो छै। ताहरां आदमियां पाबूजीरै टीको कर नारेळ पाबूजीरै हाथ देनै सगाई कर पाछा फिरिया।

पाबूजी आघा पधारिया सो ददरैरै आया। आगै गोगाजी विराजिया, ताहरां सदा बाईसूं केलण हसतो — ‘जु काको दोदैरी सांढियां कद आंण देसी?’ इतरै हरियो आयो। आयनै कही — ‘भीतर बाईसूं मालम करावो, जु पाबूजी पधारिया छै। दोदैरी सांढियां रा वरग तनै संकळपाया हुता सु लायो छै। संभाळ लेवो।’ ताहरां गोगाजी बाहिर आयनै पाबूजीसूं मिळिया। ताहरां सांढियां सरब संभाळ भतीजीनूं दीवी छै। अर कह्यो — ‘एकै बांडै ऊंठ विना सरब वरग छै।’ ताहरां सारी सांढियां गोगाजी संभाही। पण गोगाजीरै मनमें विसवास रह्यो नहीं — ‘जु दोदो आज जोर बळ छै। तैरी सांढियां कैसूं लीवी जावै? पण कठै बीजी जायगासूं ले आयो छै।’

ताहरां गोगोजी पाबूजीनूं भगत करी नै विचारी — ‘जु पाबूरी करामात पण देखीस।’ ताहरां गोगोजी पाबूजी आरोगिया।

आरोगनै बैठा, ताहरां गोगोजी पाबूजीनूं कही — ‘पाबूजी! म्हांरै केईरो नांमलियो वैर छै। सो थे अठै रहो तो वैर लियां।’ ताहरां पाबूजी कही — ‘बोहत भलां, रहिस्यां।’

पछै रात पड़ी। ताहरां गोगैजी पाबूजीनूं कही — ‘आंपै परभाते सौंण लेस्यां। जो सौंण आछा हुआ तो चढस्यां।’ ताहरां पाबूजी कह्यो — ‘सवण किसा लेस्यां? आप जठी चढस्यो तठी फतै कर आवस्यां।’ ताहरां गोगोजी कही — ‘राज! आंपणी धरती मांहै स तो सवण मांनीजै छै।’ ताहरां रात तो ऐ पोढि रह्या।

अर परभात हुवौ ताहरां गोगोजी पाबूजी दोनूं घोड़ां चढि सवण लेणनूं हालिया। तठै सवण तो कोई हुवौ नहीं। ताहरां एकै रूंख हेठै ही जाजम विछायनै दोनूं सिरदार सूता। घोड़ा दोनूं चरणनूं ढाळिया। इतरै ठंडो वगत हुवौ। ताहरां ऐ जागिया।

ताहरां गोगैजी कह्यो — ‘घोड़ा हूं ले आऊं छूं, ज्युं आंपां घरै हालां।’ ताहरां पाबूजी कह्यो — ‘राज! आप विराजो। हूं ले आईस।’ ताहरां गोगैजी कही — ‘थे वडेरा छो, छोटा तोई सुसरा छो, पग-वडा छो, थे बैसो, हूं ले आईस।’ ताहरां पाबूजी कही — ‘आ तो साची, पण थे बूढा छो, अर म्हे मोटियार छां।’ ताहरां पाबूजी घोड़ां री खबर करण गया। आगै जाय देखै तो कासूं? नाग २ छै, तिके तो सेखड़ हुआ घोड़ा चारै छै। अर दोय नागांरा घोड़ांरै पगे दांवणा छै। ताहरां पाबूजी देखनै विचारी जु — ‘आ म्हनै गोगोजी करामात देखाळी छै।’ ताहरां पाबूजी पाछा आया। आयनै गोगैजीनूं कही — ‘राज! घोड़ा तो दीसै नहीं। कठीनै नीसर गया। म्हनै तो मिळिया नहीं।’

ताहरां पाबूजी तो जाय जाजम बैठा नै गोगोजी हाथमें बरछी लेनै घोड़ांरी खबर करण गया। आगै देखै तो कासूं? पांणीरो वडो हवद भरियो छै। तैरै मांहै एक नाव छै, तै नावमें घोड़ा दोनूं तिरै छै। हवद ऊंडो बोहत। गोगोजी विचारी जु — ‘आ म्हनै पाबू करामात दिखाळी छै।’ आ जांणनै गोगोजी पाछा पाबूजी पासै आया। ताहरां पाबूजी कही — ‘राज! घोड़ा लाधा?’ ताहरां गोगोजी कह्यो — ‘राज! म्हारै मनमें संदेह हुतो, सु हमैं मिटियो। म्हैं लाधा थांनै।’

ताहरां पाबूजी गोगोजी भेळा हुयनै घोड़ांनूं गया। आगै देखै तो कासूं? ऊभा छूटा चरै छै। तद ऐ घोड़ा लेय लगामां देनै असवार हुयनै गोगोजीरी कोटड़ी आया। पछै पाबूजीनूं भगत जीमायनै विदा दीवी।

पाबूजी अर हरियो थोरी असवार हुयनै सांढियां देनै कोळू आया। ताहरां वसेक हुवो।

ताहरां पाबूजी वरस १२रा हुवा। ताहरां सोढां साहो लिख मेलियो। कह्यो — ‘जांन कर वेगा आवज्यो।’ ताहरां पाबूजी जांनरी तैयारी कीवी। जींदराव खीची बोलायो। गोगैजीनूं बोलाया। बूड़ैजीनूं बोलाया। जांनरी तैयारी कीवी। अर सीरोहीरै रावनूं पण बोलायो, सो आयो नहीं। ताहरां जांन चढी।

ताहरां चांदैरी बेटीरो पण वीमाह हुतो। चांदो विखैमें नीसरियो तद सात गांवै बेटी दीवी हती। तैरी सातेई जांनां आई। ताहरां चांदैनूं पाबूजी कही — ‘चांदा! थारै पण वीमाह छै; तूं अठै रहि।’ ताहरां चांदो तो अठै रह्यो। अर डांबो साथै गयो।

ताहरां जांननूं मारग में जावतां वडाकारो सवण हुवौ। ताहरां सवणियां कही — ‘राज! सवण भला न हुवा छै, पाछा फिरो। बीजै साहै परणीजस्यां।’ ताहरां कही —’थे पाछा फिरो। हूं तो कोई फिरूं नहीं। लोक कहै जु पाबूजीरी तेल चढी रही।’ ताहरां पाबूजी तो आघा चढिया अर साथै एक डांबियो हुवो। अर बीजो साथ सर्व पाछो फिरियो।

ताहरां पाबूजी घड़ी २ रात गयां धाट जाय पुहता। उठै सोढां भली भांतसूं वीमाह कियो। ताहरां पाबूजी फेरा लेनै हालण लागा। ताहरां सोढां कही — ‘राज! म्हांमें चूक किसी, सु न जीमो, न कोई भगत लिवो, सु किसै वासतै? दिन दोय चार रहो, ज्यां दायजो देनै विदा करां।’ ताहरां पाबूजी कह्यो जु — ‘म्हांनूं सुगन लांचा हुआ छै। तैसूं म्हे रातोरात घरां जावस्यां। पाछा मासेकनूं आवस्यां। भगत-दायजो जदी करज्यो।’ ताहरां सोढां कही — ‘मरजी रावळी, चढो।’ ताहरां पाबूजी चढिया। ताहरां सोढी कह्यो — ‘हूं पण न रहूं, साथै हालीस।’ ताहरां सोढी पण वैहल बैसनै साथै हुवा, सु पाबूजी रातोरात हलांणों लेनै कोळू आया। अठै हरख वधाई हुई। पाबूजी सोढी जाय मैहल मांहै पोढिया छै। डांबो आपरै घरै गयो।

ताहरां जींदराव खीची आयो हुतो सु पाबूजी बूड़ैजी जींदरावनूं सीख दीवी। ताहरां जींदराव मारगमें जावतां काछेलां चारणांरो वित लियो। ताहरां गोहरी आय पुकारियो। कह्यो — ‘जी! खीची जींदराव धण चरतो हतो, तठैसूं सर्व लियां जावै छै।’ ताहरां बिरवड़ी चारण आयनै बूड़ै आगै कूकी। कह्यो — ‘बूड़ा! वाहर धाय, खीची गायां घेरियां जाय छै।’ ताहरां बूड़ैजी कही — ‘बाई! म्हारी आंख दूखै छै। आज तो चढियो ना जाय।’

ताहरां चारण कूकती-कूकती पाबूजीरै महल आई। आयनै चांदैनूं कही — ‘चांदा! पाबूजी नहीं, अर खीची म्हारो धण सर्व लियो, सो तूं चढ।’ ताहरां चांदै कही — ‘हे! कूक नां। पाबूजी पधारिया छै।’ इतरै पाबूजी पण झरोखै कर दीठो। कह्यो — ‘कासूं छै?’ ताहरां कही — ‘राज! काछेली बिरवड़ीरो धण खीची जींदराव लियो। अर बूड़ोजी चढै नहीं।’

ताहरां पाबूजी कह्यो — ‘घोड़ां जीण करावो।’ ताहरां पाबूजी असवार हुवा। सात-वीस जांनी नै सात चांदैरा भाई, साराई चढिया। तिकै खीचीनूं पुंहता। तठै लड़ाई हुई। खीचीरो लोक घणो मारीजियो। धण सर्व पाबूजी घेर लियो।

लेनै ऐ तो कोळू आवै। गूंजवो कोहर तो, तठै चारणरो वित पावण वेई, सु कोहर चाढियो, सु पांणी नीसरै नहीं। ताहरां चारण बिरवड़ी कही — ‘वडा राठोड़ घेरी छै ज्युं पाय।’ ताहरां पाबूजी कोहर तेवण आप लागा। ताहरां एक वारो काढियो। तैसूं कोठा, कूंड्यां, खेळियां सर्व भरी। बिरवड़ी चारणरो धण सर्व पायो।

अर वांसै बिरवड़ीरी छोटी बैहन बूड़ैजीनूं जाय पुकारी। कह्यो — ‘बूड़ा! हमैं तो कितराइक काळ जीवीस। पाबूजी तो कांम आया।’ इतरी इयै कही। ताहरां बूड़ैजीनूं रीस आई। ताहरां बूड़ैजी चढिया सो खीचीनूं जाय पुहता। ताहरां बूड़ैजी कह्यो — ‘रे खीची! पाबूनै मार कठै हालियो? पग मांड!’ ताहरां खीची संकियो। कह्यो — ‘राज! पाबूजी तो धण लेनै पाछा फिरिया, थे लड़ो मती।’ तोई बूड़ोजी मांनै नहीं। ताहरां लड़ाई हुई। बूड़ो कांम आयो।

ताहरां खीची आपरा साथसूं कही — ‘जो आज आंपां पाबूनै मारियो नहीं तो पाछै आपांनै नहीं छोडसी।’ ताहरां खीचीरो साथ पाछो फिरियो। सो कूंडळ पमै घोरंधाररै आयो। ताहरां पमैनूं कही जु — ‘ऐ राठोड़ थारी धरती दबावता-दबावता आसी, सो जे तूं आज म्हांरै सांमल हुवै तो दाव छै, पाबूजीनूं मारां।’ ताहरां पमो पण चढ सामल हुवौ।

ऐ चढनै पाबूजी ऊपर आया। तठै पाबूजी गायां पाइनै छोडी छै। इतरै खेह दीठी। ताहरां पाबूजी कह्यो — ‘रे चांदा! आ खेह कैरी?’ ताहरां चांदै कह्यो — ‘राज! खीची आयो।’ अर पैहलड़ी लड़ाई मांहै चांदै खीचीनूं तरवार वाही हुती, तद पाबूजी तरवार आपड़ लीवी। कही — ‘मारो मतां, बाई रांड हुसी।’ ताहरां चांदै कही — ‘राज! आप तरवार आपड़ी सु बुरी कीवी। ऐ छोडै छै? मराया भलां।’ ताहरां चांदै कही — ‘हरांमखोर आयो।’ ताहरां पाबूजी खेत बुहारनै लड़ाई कीवी। वडो रीठ वाजियो। ताहरां पाबूजी कांम आया। सात भाई आहेड़ी कांम आया। जांनां सात आई ही, जिण में सात-वीस आहेड़ी छा, सो सर्व कांम आया। वडी लड़ाई हुई। खीचीरा पण मांणस घणा कांम आया। खीची तो लड़ाई करनै आपरै ठिकांणै गयो। पमो आपरै ठिकांणै गयो।

पाबूजी लारै सोढी सती हुई। बूड़ैजी लारै डोड-गेहली सती हुवण लागी। तद डोड-गेहलीरै सात मासरो गर्भ हुतो। तद लोकै कही — ‘आपरै पेट मांहै गर्भ छै सु थे सती मतां हुवो।’ ताहरां डोड-गेहली छुरी लेनै पेट झरड़नै बेटो काढियो अर धायनै दियो। कह्यो — ‘इयैनूं आछी तरैसूं पाळै। ओ वडो देवनीक मरद हुसी।’ ताहरां इणरो नाम झरड़ो दियो।

पछै झरड़ो वरस १२रो हुवो। ताहरां झरड़ै काकै बापरो वैर लियो। जींदराव खीचीनूं मारियो। पछै राज कियो। तिको झरड़ो अजू तांई जीवै छै। गोरखनाथजी मिळिया। सिद्ध मरद हुवो।

॥ इति पाबूजीरी वात संपूर्ण ॥
॥ शुभं भवतु ॥ कल्याणमस्तु ॥


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